कई बार हम देखते हैं कि पत्रिका में ग्रह उच्च के बैठे हुए हैं तो हम कहने लग जाते हैं कि व्यक्ति के लिए बहुत शुभ फल देंगे उनकी दशा अच्छी जाएंगी और जब दशा आती है तो हमको इसके विपरीत परिणाम देखने को मिलता है, ऐसा क्यों होता है ? यह सब हम जानने का प्रयास करेंगे।
ज्योतिष में ग्रहों के फल जानने के कुछ नियम हैं :
1. सबसे पहले देखें कि कौन सा ग्रह उच्च का कहीं अकारक ग्रह तो उच्च का नहीं है, अगर ऐसा है तो हमें उससे ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
अकारक ग्रह वे ग्रह हैं जो 3, 6, 8 या 12 भाव का स्वामी हैं, और यह ग्रह उच्च का हो तो बेहतर फल नहीं देगा।
वहीं लग्न का स्वामी ,त्रिकोण का स्वामी, योगकारक ग्रह उच्च के हो बेहतर फल देने वाले होते हैं।
2. उच्च ग्रह के साथ नीच का ग्रह स्थित होने से उच्च ग्रह की शक्ति कम होती है जिस वजह से वह जितने अच्छे फल दे सकता था उतने बेहतर परिणाम नहीं दे सकता क्योंकि उच्च ग्रह में से ऊर्जा स्थानांतरित होती है नीच ग्रह की तरफ।
3. ग्रहों के कई बल शास्त्रों में बताए गए हैं उन्हीं में से यह उच्च नीच का बल राशि आधारित है, इसी प्रकार ग्रह यदि शुभ भाव उच्च न हो तो उसके फलों में गिरावट आती है जैसे कोई ग्रह 6वे भाव, 8 वे भाव में या 12 वे भाव में उच्च होता है तो यह बेहतर नहीं माना जाता पर इसका अपवाद सिंह लग्न है क्योंकि सिंह लग्न में मंगल 6वे भाव में उच्च होकर भाग्य स्थान को देखता है और 8वी दृष्टि से लग्न को देखता है अतः यह शुभ फल दाई होगा वहीं सिंह लग्न में ही गुरु उच्च का हो तो 12वे भाव में बैठेगा और यह 8वे भाव को देखेगा अतः यह गुरु से हमको ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
ग्रह यदि दिकबल हीन है तो उच्च होने पर भी उसके फलों में कमी होगी वहीं नीच ग्रह भी यदि दिकबली है तो उसके फलों में वृद्धि होगी, शुभता-अशुभता ग्रह के भाव के स्वामित्व पर निर्भर करेगी।
4. उच्च ग्रह यदि अस्त हो तो भी उसके फलों में कमी देखने को मिलेगी।
5. उच्च ग्रह का वक्री होना भी ज्यादा अच्छा नहीं माना जाता कई विद्वानों के मतानुसार।
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